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शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

शर्म निरपेक्षों शर्म करो !


शर्म निरपेक्षों शर्म करो ! 
वे कौन लेखक है! जो वाहवाही के लिए दादरी के दर्द से. आकाश सिर उठाते है। 
किन्तु बन जाये मालदा का मलीदा भी, शर्मनिरपेक्षों के होंठ तक सिल जाते हैं।। -तिलक (आज़ाद कलम) 
आओ मिलकर भारत को, इन दोहरे चरित्र के राष्ट्र द्रोहियों से बचाएं। 
सहमत हो तो जन जन तक पहुंचाएं, 125 करोड़ से शेयर करें,
समाज की सोच बदलेगी तथा दृष्टिकोण बदलेगा, निश्चित ही वेश- परिवेश और ये जीवन बदलेगा।
जो शर्मनिरपेक्ष, अपने दोहरे चरित्र व कृत्य से- देश धर्म संस्कृति के शत्रु;
राष्ट्रद्रोह व अपराध का संवर्धन, पोषण करते। उनसे ये देश बचाना होगा। तिलक