शर्म निरपेक्षों शर्म करो !
वे कौन लेखक है! जो वाहवाही के लिए दादरी के दर्द से. आकाश सिर उठाते है।
किन्तु बन जाये मालदा का मलीदा भी, शर्मनिरपेक्षों के होंठ तक सिल जाते हैं।। -तिलक (आज़ाद कलम)
आओ मिलकर भारत को, इन दोहरे चरित्र के राष्ट्र द्रोहियों से बचाएं।
सहमत हो तो जन जन तक पहुंचाएं, 125 करोड़ से शेयर करें, समाज की सोच बदलेगी तथा दृष्टिकोण बदलेगा, निश्चित ही वेश- परिवेश और ये जीवन बदलेगा।
जो शर्मनिरपेक्ष, अपने दोहरे चरित्र व कृत्य से- देश धर्म संस्कृति के शत्रु;
राष्ट्रद्रोह व अपराध का संवर्धन, पोषण करते। उनसे ये देश बचाना होगा। तिलक
1 टिप्पणी:
गू -गल की सड़ांध!? कैसे हुआ अर्थ कुअर्थ?
इस ब्लॉग का नाम है शर्म निरपेक्षता का उपचार। अर्थात छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर फैलती शर्मनिरपेक्षता के निर्लज्ज देशद्रोह का उपचार। राष्ट्रहित सर्वोपरि आधारित एक समर्पित राष्ट्रीय चिंतन।
किन्तु गूगल की संग्रहण नीति, उसे अंग्रेजी में अनुवाद करने की है। मशीन अनुवाद उसके भाषांतरण से भावनात्मक परिवर्तन करके, पुनः उसे यथास्थिति देने में असफल रहता है। इस प्रकार अर्थ का अनर्थ हो जाता है। इतने वर्षों इस पर ध्यान दिया नहीं, मूल विषय की छवि और 10 वर्ष पूर्व की लोकप्रियता को नष्ट कर दिया। निरंतरता के अभाव में जो दिखता है वही समझ लिया जाता है।
भारतस्य शर्मनिरपेक्ष व्यवस्था दर्पण:- शर्मनिरपेक्षता का अर्थ सापेक्षता नहीं। इसके विपरीत है। किन्तु दोहरा भाषांतरण सब उल्टा-पुल्टा कर दिया।
गूगल से गू गलने की सड़ांध आने लगी। इसे बदलना होगा। स्वदेशी विकल्प लाओ, जड़ों से जुड़ें। तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार -युगदर्पण ®2001 मीडिया समूह YDMS👑
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